
दीप मैठाणी, संपादक NIU ✍️ उत्तराखंड प्रदेश में मॉनसून की भारी बारिश के चलते हो रही आपदाओं से निपटने हेतु सरकार भले ही बड़े से बड़ा दावा कर रही हो परंतु कहां आपदा आएगी और कहां नहीं यहां तक कि कहां भारी बारिश और गर्जना होगी सरकार के पास इसका भी सटीक पूर्वानुमान नहीं है।
आपको बतातें चलें कि उत्तराखंड सरकार ने केदारनाथ त्रासदी से सबक लेते हुए आपदाओं से होने वाले नुक्सान को कम करने व मौसम के पूर्वानुमान के बारे में सटीक जानकारियां देने के लिए प्रदेश में तीन अत्याधुनिक डोपलर रडार लगाए हैं।

ये तकनीक से लैस रडार हैं उत्तराखंड सरकार का ये एक क्रांतिकारी कदम था मौसम विज्ञान के क्षेत्र में परंतु दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से इस समय जब प्रदेश में आपदा जैसे हालात उत्पन्न हो रखें हैं उस दौरान प्रदेश में सिर्फ एक ही डोपलर सटीकता के साथ कार्य कर रहा है, दूसरा कभी बंद है तो कभी खुला और तीसरा बिल्कुल ठप्प पड़ा है मगर सरकार की मानें तो हम सुरिक्षत हाथों में हैं। आखिर सरकार हम किस तरह से सुरक्षित हाथों में हैं, केदारनाथ हादसे के बाद से अगर बिजली भी गरजती है तो हमारे हाथ पैर काँप उठते हैं, विगत वर्ष भी कई गांव मलबे में तब्दील हुए मगर ऐसा लगता है कि सरकार ने और प्रशासनिक अधिकारियों ने उन हादसों से कोई सबक नहीं सीखा,



चिंताजनक हालातों में इस समय गढ़वाल क्षेत्र है क्योंकि टिहरी से लेकर उत्तरकाशी तक कहीं कोई बादल फटने जैसी अप्रिय सूचना होगी तो हमारा मौसम विभाग उसका पूर्वानुमान तक भी हमें नहीं दे सकता,
मुक्तेश्वर वाले रडार से पूरे गढ़वाल क्षेत्र के लिए सूचना प्राप्त नहीं हो सकती है चमोली के लिए भी सबसे नजदीक का रडार लेंसडाउन ही है। ऐसे में मौसम विभाग को पूरे गढ़वाल क्षेत्र की जानकारी कैसे और कहां से मिल रही है यह अपने आप में बड़ा सवाल है, साथ ही जब करोड़ों रुपए इन उपकरणों पर खर्च किए गए हैं तो इनका उपयोग न कर पुराने ढर्रे पर ही क्यों चला जा रहा है?
केदारनाथ से लेकर के आराकोट तक की तबाही हम देख चुके हैं यहां तक की मैदानी क्षेत्र की बात करें तो सहस्त्रधारा क्षेत्र तक विगत वर्षों पूर्व तबाह हो गया था, पूरा का पूरा साराखेत और सिल्ला गाँव आज भी मलबे में तब्दील पड़ा है तो ऐसे में इतनी बड़ी लापरवाही कैसे बरती जा सकती है? खुद को धाकड़ कहलाना पसंद करने वाले मुख्यमंत्री धामी जी को इस बात का जवाब जरूर देना चाहिए कि उनके राज में आखिर इतनी बड़ी लापरवाही किसके स्तर से हुई है?

क्या इन रडारों की पूर्व में ही टेस्टिंग नहीं की गई? क्या कंपनियों को टेंडर देकर या कंपनियों से इन्हें खरीद फरोख्त कर सिर्फ पहाड़ों में यूं ही राम भरोसे छोड़ दिया गया? इन उपकरणों को नियमित संचालित किए जाने की जिम्मेदारी किसकी है? इन लापरवाह अधिकारियों व् भ्रष्ट नेताओं की लापरवाही का नतीजा आखिर उत्तराखंड की जनता ही कब तक भुगतेगी।