
दिल्ली NIU
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं “हवा महल” की।
यह कहानी शुरू होती है 18वीं सदी के अंत में, जब जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने एक अनोखी समस्या का समाधान निकाला। उन दिनों, शाही परिवार की महिलाएं ‘पर्दा प्रथा’ का सख्ती से पालन करती थीं। वे आम जनता के बीच बाहर नहीं निकल सकती थीं, लेकिन वे भी शहर के त्योहारों, उत्सवों और शाही जुलूसों को देखना चाहती थीं।
महाराजा सवाई प्रताप सिंह, जो भगवान कृष्ण के परम भक्त थे, उन्होंने एक ऐसा महल बनाने का फैसला किया जो इस समस्या को हल कर सके। उन्होंने वास्तुकार लाल चंद उस्ताद को यह ज़िम्मेदारी सौंपी।
और 1799 में, लाल चंद उस्ताद ने एक ऐसी इमारत का निर्माण किया, जो आज तक अपनी मिसाल आप है। यह एक पांच मंजिला इमारत है, जिसे भगवान कृष्ण के मुकुट के आकार में बनाया गया था।
इसकी सबसे खास बात है इसकी जालीदार खिड़कियां, जिन्हें ‘झरोखे’ कहा जाता है। इस महल में कुल 953 छोटे-छोटे झरोखे हैं। ये जालीदार खिड़कियां दो काम करती थीं: पहला, ये शाही महिलाओं को बिना किसी की नज़र में आए, बाहर का नज़ारा देखने का मौका देती थीं। और दूसरा, इन्हीं झरोखों से होकर महल के अंदर हमेशा ताजी हवा आती रहती थी, जिससे गर्मियों में भी महल ठंडा रहता था। इसी वजह से इसका नाम “हवा महल” पड़ा।
यह महल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि राजपूत और मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन संगम है। इसकी हर जाली, हर कंगूरा और हर गुंबद कला का एक शानदार नमूना है। आज भी हवा महल जयपुर की शान है, जो इतिहास, कला और वास्तुकला की एक खूबसूरत कहानी कहता है।