
रिपोर्टर- सुनील सोनकर
जब हम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बात करते हैं, तो आंखों के सामने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता की तस्वीर उभरती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस लड़ाई में एक ऐसा अंग्रेज वकील भी शामिल था, जिसने अपनी पूरी ज़िंदगी भारतीयों की आवाज़ बनने में लगा दी और अंत में भारत की ही मिट्टी में दफन हो गया। इस वीर अंग्रेज का नाम था जॉन लैंग पेशे से वकील, दिल से क्रांतिकारी, और लेखनी से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ धारदार हथियार थे। मसूरी के इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि जॉन लैंग का जन्म 19 दिसंबर 1816 को सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में हुआ। वह ऑस्ट्रेलिया के पहले उपन्यासकारों में से एक थे, लेकिन किस्मत ने उन्हें भारत की मिट्टी से जोड़ दिया।
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते है कि मसूरी में दफन है रानी झांसी का वकील, एक अंग्रेज, जो भारत के लिए लड़ा।1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी बचाने के लिए एक अंग्रेज वकील की मदद ली थी। उस वकील का नाम था जॉन लैंग, जो ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुए थे, लेकिन भारत से इतना जुड़ गए कि यहीं के होकर रह गए। जॉन लैंग ने रानी लक्ष्मीबाई का केस कोलकाता हाईकोर्ट में लड़ा। भले ही केस हार गए, लेकिन उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नीतियों का डटकर विरोध किया। वे एक पत्रकार भी थे। उन्होंने मफसिलाइट नाम से अखबार शुरू किया, जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर लिखा। इसी कारण उन्हें खतरा मानकर कई बार धमकाया गया। 1864 में मसूरी में उनकी रहस्यमयी मौत हो गई। हत्या का शक था, पर जांच दबा दी गई। उनकी कब्र आज भी मसूरी के कैमल्स बैक रोड पर मौजूद है। 1964 में लेखक रस्किन बॉन्ड ने उनकी कब्र खोजकर दुनिया को फिर से उनकी याद दिलाई।