
देहरादून NIU ✍️ उत्तराखंड प्रेस क्लब, देहरादून में ब्रिगेडियर सर्वेश दत्त (पहाड़ी) डंगवाल द्वारा रचित एक अत्यंत महत्वपूर्ण कृति ‘व्यवहारिक और नेतृत्व निर्देशिका, पूर्व सैनिकों को समर्पित प्रेरणादायक गीत “कदम कदम बढ़ाए जा”, तथा समाज को समर्पित भावना-संवेदित कविता “नूरानांग रेजांग” की गाथा गाने वालों” का गरिमामय विमोचन एवं प्रमोचन समारोह आयोजित किया गया।
इस विशेष अवसर पर लेखक ने उन तीन विभूतियों को मंच पर आमंत्रित किया, जो न केवल उत्तराखंड बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र का गौरव हैं। ये हैं
* सुश्री साक्षी पोखरियाल, शिक्षा विद
* वीर नारी श्रीमति लक्ष्मी तोमर, पत्नी अजय वर्धन तोमर कीर्ति चक्र, 14 गढ़वाल राइफल्स
नायब सुबेदार बीर सिंह पंवार, 2 गढ़वाल राइफल्स, जिनके शरीर पर युद्ध के धाव आज भी देशप्रेम की मौन गाथा कह रहे हैं।
* कैप्टन किशोर सिंह, सेना मेडल 15 गढ़वाल राइफल्स

इन तीनों राष्ट्रनायकों की उपस्थिति ने समारोह को गौरवपूर्ण और प्रेरणादायी बना दिया। इनके अतिरिक्त मंच पर गौरव सैनानी एसोसिएशन के अध्यक्ष महावीर सिंह राणा, तथा पूर्व सैनिक समन्वयन समिति के अध्यक्ष राकेश ध्यानी और उपाध्यक्ष सत्य प्रसाद कंडवाल भी उपस्थित थे, जिनकी सहभागिता ने आयोजन को एक व्यापक सामाजिक संदेश दिया।
ब्रिगेडियर डंगवाल ने अपने संबोधन में कहा कि-
“आज समाज और राष्ट्र को ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो केवल सत्ता तक सीमित न हो, बल्कि सेवा, संवाद और समर्पण को अपना मूलमंत्र बनाए।”
उन्होंने यह स्पष्ट किया कि नेतृत्व अब केवल पद या कुर्सी नहीं है, बल्कि यह हर उस सामान्य नागरिक की शक्ति है जो बिना किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के, समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना रखता है।
उन्होंने ऐतिहासिक उदाहरण देते हुए प्रश्न उठाया
“क्या महात्मा गांधी सत्ता में थे? क्या अन्ना हजारे, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला, या चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी सत्ता में थी?
उत्तर था “नहीं।”
लेकिन उनके नेतृत्व ने समाज की दिशा बदल दी, क्योंकि वह नेतृत्व जनचेतना से उपजा, जनता से से जुड़ा और सेवा से संचालित था।

ब्रिगेडियर डंगवाल ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि,
“यदि युवा नेतृत्व को केवल करियर नहीं, बल्कि एक जिम्मेवारी के रूप में देखें, तो राष्ट्र का कायाकल्प संभव है।”
उन्होंने बताया कि यही विचार उनके स्मारिका लेखन की प्रेरणा बने।
“यह केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक आंदोलन है नागरिक चेतना को जगाने का, उन्हें जिम्मेदार बनाने का।”
उन्होंने कहा-
“नेतृत्व कोई अधिकार नहीं यह कर्तव्य है।”
“नेतृत्व कोई तमगा नहीं यह सेवा है।”
“नेतृत्व कोई विरासत नहीं यह हर जागरूक नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है।”
समारोह के समापन पर उन्होंने श्रोताओं से आह्वान किया-
“आइए, हम सब मिलकर नेतृत्व की इस भावना को समझें, अपनाएँ, और समाज को नई दिशा दें। तभी हमारा उत्तराखंड, हमारा भारत सच्चे अर्थों में विकसित और समृद्ध बन पाएगा।”