दीप मैठाणी NIU ✍️ देहरादून
लगातार मिल रही शिकायतों और मीडिया रिपोर्टों के बावजूद जमीन पर अवैध कब्जा करने के प्रयासों पर पुलिस और संबंधित अधिकारियों की तरफ से ठोस कार्रवाई नहीं होना क्षेत्रीय कानून व्यवस्था की साख पर प्रश्नचिह्न है।
घटनाक्रम और भूमिका आर ए कंस्ट्रक्शन की जमीन पर अचानक कुछ दबंग लोगों ने निर्माण कार्य या कब्जे की कोशिश की, जिस बारे में स्थानीय निवासियों या स्वयं कंस्ट्रक्शन फर्म ने पुलिस को सुचित किया।
लेकिन मौके पर तैनात पुलिस ने या तो हस्तक्षेप नहीं किया, या उल्टा दबाव डालकर पीड़ित पक्ष को चुप रहने या समझौता करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की।
कई बार ऐसे मामलों में पुलिस की चुप्पी या निष्क्रियता प्रशासनिक या राजनीतिक रसूखदारों के सीधे-सीधे संरक्षण, या पैरवी के कारण देखी जाती है।
आखिर किसके संरक्षण में यह कब्जा?मामले में जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आती है, वह यह है कि अवैध कब्जा तभी संभव होता है जब पुलिस या प्रशासन निष्पक्ष कार्रवाई करने के बजाय किसी पक्ष विशेष को संरक्षण दे।
कई मामलों में देखा गया है कि या तो स्थानीय नेता, प्रभावशाली कारोबारियों की मिलीभगत, या पुलिसकर्मियों के व्यक्तिगत लाभ के लिए ऐसे अवैध कब्जे को राजनीतिक संरक्षण मिलता है.

पुलिस पर जमीन कब्जाने या विपक्षी से पैसा/संपत्ति लेने के आरोप भी पहले सामने आ चुके हैं, और कोर्ट में ऐसे प्रकरणों की सुनवाई चलती रही है।
प्रशासनिक निष्क्रियता और सामाजिक संदेशऐसे मामलों में बढ़ती प्रशासनिक निष्क्रियता आम जनता के बीच न्याय और कानून व्यवस्था पर से विश्वास उठाता है।

जमीन संबंधी विवादों की शिकायतों का ऑनलाइन या अदालत में समाधान अपेक्षित है, लेकिन प्रभावशाली पक्ष अक्सर इसे दीवानी विवाद या विलंब में डालकर लाभ उठाते हैं।
नागरिकों को जमीन विवाद और अवैध कब्जे के खिलाफ तुरंत प्रशासनिक शिकायत, मीडिया और जनसंवाद का सहारा लेना चाहिए.




