
दून उद्योग व्यापार मंडल की एक बैठक हुई । बैठक में जीएसटी के मोबाईल दस्ते के अधिकारी की कार्यशैली पर आवाज उठाई गई । हमारे सारे देहरादून के व्यापारी भली-भांति जानते हैं कि मोहब्बेवाला चेक पोस्ट पर कार्यरत अधिकारी व्यापारियों की छोटी-छोटी गलतियां ढूंढकर जोकि मानव होने के नाते हो जाती हैं , उन पर जबरदस्ती हम लोगों का माल रोक कर और जबरदस्ती के कानून दिखाकर कई कई गुना पेनाल्टी और टैक्स वसूला जा रहा है| इस विषय में दून उद्योग व्यापार मंडल की ओर से निम्नलिखित मांगे रखी गई है :-
1) पहली बात हमारा कहना है कि जीएसटी कानून जब से पूरे देश में लगा है तो भारत सरकार ने पूरे देश से चेक पोस्ट खत्म कर दी हैं तथा उनकी जगह मोबाइल दस्ते या फ्लाइंग स्क्वायड बना दी गई है लेकिन हमारे उत्तराखंड में यह देखने में आ रहा है कि यह मोबाइल दस्ते मोबाइल ना होकर बाकायदा बॉर्डर पर चेक पोस्ट चला रहे हैं तथा चेकपोस्ट की भांति ही काम कर रहे हैं|
2) दूसरी बात कि जिन चेकपोस्ट के अधिकारी के विषय में हम चर्चा कर रहे हैं, इनका नाम विभाग में एक इमानदार अधिकारी के रूप में जाना जाता है लेकिन इमानदारी का यह मतलब तो नहीं कि उनके अलावा हर एक दूसरा आदमी बेईमान है तथा वह चोर है । इनका काम है जबरदस्ती छोटी मोटी ग़लती clerical मिस्टेक, ईवे बिल में कोई गलती, ईवे बिल के माध्यम से अगर माल रात 12:00 बजे तक पहुंचना था, किसी वजह से गाड़ी खराब हो गई, रास्ता जाम हो गया या बारिश में कहीं पानी आ गया और माल 2 घंटे लेट पहुंचा रास्ते में नेटवर्क की समस्या थी, तो उसके ऊपर यह भारी जुर्माना वसूल रहे हैं तथा प्रदेश सरकार अपना राजस्व बढ़ाने की होड़ में और अपने उच्च अधिकारियों को अपना प्रदर्शन दिखाने की होड़ में, व्यापारियों का खून चूस कर सरकार का खजाना भर रहे हैं जो कि बिल्कुल गलत है ।
3) तीसरी बात है कि जिस व्यापारी का माल रुक जाता है, वह 1 हफ्ते तक अपनी दुकान छोड़कर मोबाइल वाले चेक पोस्ट के चक्कर लगाता रहता है, ट्रक वाला भी परेशान रहता है, उसकी गाड़ी भी रुकी रहती है और यदि व्यापारी इनके कहने के मुताबिक जुर्माना ना भरे तो उसे धमकाया जाता है ,कि आपकी दुकान पर हम जीएसटी का छापा डलवा देंगे या आपकी फाइल और रिकॉर्ड खराब कर देंगे |
4) इसके अलावा हमारी यह भी मांग है कि जिस मामले में यह साफ नजर आ रहा है की व्यापारी का कोई टैक्स चोरी का इरादा नहीं था, किसी मामूली त्रुटि पर भी उससे जो जुर्माना वसूला जाता है, तो जीएसटी के कानून में जो अधिकतम है वह लिया जाता है ना कि अधिकारी अपने विवेक के अनुसार न्यूनतम जुर्माना लेकर भी माल छोड़ सकता है | इसमें हमारी मांग यह भी है कि अधिकतर व्यापारि छोटे छोटे दुकानदार हैं उनके मोबाइल पर एक मैसेज आ जाता है कि आपका इतने रुपए का ई वे बिल दूसरी पार्टी ने बनाया है वह उस मैसेज को देख कर फिर अपनी दुकानदारी में व्यस्त हो जाता है वह कहां तक ध्यान रखें की ई वे बिल किस दिन बना था किस दिन तक माल पहुंचना था तथा इसमें से भी बहुत से व्यापारी कंप्यूटर चलाना या ऑनलाइन काम करना नहीं जानते उनके पास पार्ट टाइम या हफ्ते में एक-दो दिन पर अकाउंटेंट आते हैं तथा वह लैपटॉप पर अकाउंट बना लेते हैं | इन छोटे-छोटे मामलों में कानून की आड़ लेकर व्यापारियों का जिस प्रकार से नाजायज उत्पीड़न हो रहा है वह बंद होना चाहिए ।
5) एक और हमारी बड़ी जायज मांग है की यदि एक अधिकारी माल को रोकता है तो उस माल को छोड़ने की जिम्मेदारी दूसरे अधिकारी या हमारे सेक्टर ऑफिसर के पास होनी चाहिए जो माल पकड़ेगा वह अधिकारी माल नहीं छोड़ेगा तो इससे भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगेगी तथा हमारे प्रधानमंत्री और हमारे मुख्यमंत्री जो आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे जोरों शोरों से काम कर रहे हैं !ऐसा करने से भ्रष्टाचार भी रूकेगा|
6) अगली मांग है की यह अधिकारी व्यापारियों को धमका कर कहता है कि इस समय तो आप पैसा जमा कर दो बाद में अपील में छुड़वा लेना, जब माल अपील में छूट सकता है तो यह अधिकारी यहीं पर माल क्यों नहीं छोड़ देते क्यों व्यापारी से जबरदस्ती पैसा जमा करवाकर उसको आर्थिक नुकसान देकर और अपीलीय अधिकारी के चक्कर लगाने के लिए विवश किया जाता है ? जबकि हमारे उत्तराखंड में अपील की कोई उचित व्यवस्था नहीं है और यदि अपील में जाया भी जाए तो 6 माह से भी ज्यादा का समय लग जाता है, यदि वह जुर्माना जमा नहीं कराता है तो उसका माल 6 महीने तक बॉर्डर पर पढ़ा हुआ सडता रहता है तथा उसमें से माल के चोरी होने का भी अंदेशा रहता है । दूसरे इतना समय हर दुकानदारों के पास नहीं होता है, वह जुर्माना भर देते हैं तथा फिर चुप बैठ जाते हैं! इसमें सबसे बड़ी परेशानी यह है कि यदि पीड़ित व्यापारी अपनी फरियाद लेकर कई बड़े अधिकारियों के पास जाता है तो यह साफ नजर आता है कि वह बड़े अधिकारी भी है समझ रहे हैं कि व्यापारी की कोई गलती नहीं है पर इस मोबाइल वाले चेक पोस्ट के अधिकारी के सामने वह मजबूर दिखते है तथा पीड़ित व्यापारी हमारे प्रदेश में tribunal की व्यवस्था ना होने से अपनी बात आगे तक नहीं पहुंचा सकता और ट्रिब्यूनल ना होने से उसको हाई कोर्ट जाना पड़ेगा जहां का खर्चा उठाना व इतना समय देना एक दुकानदार की हिम्मत से बाहर है, हार कर वह मजबूर होकर अधिकारी द्वारा बताया गया जुर्माना सरकारी खजाने में जमा करा देता है।
आज के समय में जब हमारे प्रधानमंत्री और हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री इज ऑफ डूइंग बिजनेस और खुलकर व्यापार कार्य करने पर जोर दे रहे हैं तथा जगह जगह शिकायत के लिए अपने तथा विभागों के टेलिफोन नंबर भी दे रहे हैं तो क्या इस प्रकार से नाजायज तौर पर व्यापारियों को अनावश्यक परेशान करके व्यापारियों का ही खून चूस कर सरकारी खजाना भरना उचित है|
दूसरे हमारा कहना है कि जो रजिस्टर्ड व्यापारी हैं उसी को परेशान किया जा रहा है उसी का माल पकड़ा जा रहा है । उसी से जबरदस्ती का कानून दिखा कर पेनेल्टी के रूप में पैसा लिया जा रहा है|
बस जो पंजीकृत व्यापारी हैं उन्हीं को नीचोडो, व्यापारियों को व्यापार ना करने दो, व्यापारियों को परेशान करो बस यह हमारे जीएसटी विभाग की पॉलिसी हो गई है । जीएसटी विभाग की इस पॉलिसी की बैठक में जमकर भर्त्सना की गई और यह तय हुआ के शीघ्र ही व्यापारियों का एक प्रतिनिधिमंडल अपनी मांगों को लेकर जीएसटी विभाग के उच्च अधिकारियों से मिलेगा ।
उक्त बैठक में श्री विपिन नागलिया अध्यक्ष, सुनील मेसोंन महासचिव, कमलेश अग्रवाल कोषाध्यक्ष, संतोख नागपाल (पल्टनबाजार अध्यक्ष), डी डी अरोड़ा उपाध्यक्ष, सुरेंद्र प्रभाकर जिलाध्यक्ष, अजय सिंघल उपाध्यक्ष, विजय खुराना, सनी पुंज, मीत अग्रवाल, बृजलाल बंसल, रोशन जी, श्रीकृष्ण , हिमांशु, सतनाम सिंह, गुरभेज सिंह, कुलभूषण अग्रवाल, आशीष नागरथ , ऋषि नंदा, प्रतीक मेनी, विजय कोहली, मोहित भाटिया अजय वाधवा, हरीश मेहता, संजय कनौजिया, अभिषेक शर्मा,जगमोहन रावत, ललित बोहरा, विजेंद्र थपलियाल, नरेश गुप्ता , राजीव मित्तलआदि व्यापारी उपस्तित थे ।