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निर्वाचन आधिकारियों का गड़बड़-झाला, कहीं चुनाव चिन्ह ही बदल डाला, तो कहीं पहले था वोट वैलिड अचानक हुआ इनवेलिड, पढ़िए RO के कारनामे । Exclusive NIU

निर्वाचन आधिकारियों का गड़बड़-झाला, कहीं चुनाव चिन्ह ही बदल डाला, तो कहीं पहले था वोट वैलिड अचानक हुआ इनवेलिड, पढ़िए RO के कारनामे । Exclusive NIU

दीप मैठाणी NIU ✍️ देहरादून, हाल ही में समाप्त हुए उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अभी भी चर्चाओं में है क्योंकि कई जगह आर ओ यानी कि रिटर्निंग ऑफीसरों द्वारा किए गए गड़बड़ झाले अब सामने आ रहे हैं, वहीं इन गड़बड़ियों से पीड़ित बने प्रत्याशी रिटर्निंग ऑफीसरों पर लेनदेन का आरोप भी लगा रहे हैं, हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है यह तो जांच के बाद ही उजागर हो सकता है।
लेकिन अगर आप कुछ प्रकरणों पर गौर से नजर डालें और उसकी विवेचना करें तो आप पाएंगे कि रिटर्निंग ऑफीसरों ने अपनी गलतियों का सारा ठीकरा प्रत्याशियों के सर पर ही फोड़ डाला है। जिसके चलते कई प्रत्याशियों को लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद और बैलट पेपर में जीत जाने पर भी हार का सामना करना पड़ा है, एक जगह तो यह कारनामा इतना खतरनाक था कि अगर प्रत्याशी एक ही मजहब के न होकर अलग-अलग धर्म के होते तो सांप्रदायिक तनाव भी उत्पन्न हो सकता था, जी हां बिल्कुल सही पढ़ा आपने! यह मामला है राजधानी देहरादून के विकास नगर ब्लॉक स्थित ग्राम शीशमबाड़ा का जहां एक गजब और हैरान करने वाला मामला सामने आया इसमें सीधे तौर पर रिटर्निंग ऑफिसर की गलती साफ देखी जा सकती है, यहां एक ही समुदाय के दो प्रत्याशी होने की वजह से सांप्रदायिक विवाद भी टल गया अन्यथा हो सकता था कोई बड़ा हादसा।

विकास नगर ब्लॉक के ग्राम शीशमबाड़ा में चुनाव आयोग के जिम्मेदार और काबिल रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा दो प्रत्याशियों को गलत चुनाव चिन्ह देकर प्रचार प्रसार के लिए धरातल पर उतार दिया गया और जिस दिन वोटिंग की बारी आई उस दिन प्रत्याशियों को पता चला कि उन्हें गलत चुनाव चिन्ह दिए गए हैं। चुनाव आयोग द्वारा प्रत्याशी नसरीन बानों को चुनाव चिन्ह कार व प्रत्याशी नैयर को चुनाव चिन्ह इमली प्रदान किया गया था लेकिन दोनों ही प्रत्याशियों को इसकी सही जानकारी नहीं दी गई और दोनों ही प्रत्याशी अलग-अलग चुनाव चिन्ह पर चुनाव प्रचार करते रहे यानी की, नसरीन बानों ने कार चुनाव चिन्ह होने के बावजूद इमली चुनाव चिन्ह का प्रचार प्रसार किया, और नैयर ने इमली चुनाव चिन्ह होने पर भी कार का प्रचार प्रसार किया। जबकि निर्वाचन लड़ने वाली उम्मीदवारों की सूची में उनके चुनाव चिन्ह साफ व सही तरीके से लिखे गए हैं बावजूद इसकी जानकारी प्रत्याशियों को सही तरीके से नहीं दी गई और प्रत्याशी गलत चुनाव चिन्ह को लेकर अपना प्रचार प्रसार करते रहे।

निर्वाचन सूची में साफ-साफ लिखा है कि नसरीन बानो को कार चुनाव चिन्ह मिली है।।
परंतु धरातल पर नैयर ने कार चुनाव चिन्ह का प्रचार प्रसार किया, जबकि चुनाव चिन्ह इमली था।।
नसरीन ने इमली चुनाव चिन्ह का प्रचार प्रसार किया, जबकि चुनाव चिन्ह कार थी।।

यहां तक की खुद निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर नसरीन बानो को विजेता घोषित करते हुए उसके नाम पर कार चुनाव चिन्ह निर्वाचन आयोग द्वारा ही अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर दिखाया गया,

आयोग की वेबसाइट द्वारा दिया गया पहला परिणाम…

जिस पर उक्त प्रत्याशी नसरीन बानों ने खुद को जीता हुआ समझकर समर्थकों के साथ जश्न भी मनाया लेकिन यह जश्न कुछ ही पल में हवा हो गया क्योंकि कुछ क्षणों के पश्चात निर्वाचन आयोग द्वारा वेबसाइट से यह डिटेल डिलीट कर दी गई और फिर कुछ घंटों के पश्चात नैयर को विजेता घोषित करते हुए उसके नाम को वेबसाइट पर चढ़ा दिया गया।

नैयर का नाम आयोग की वेबसाइट पर

इसके बाद इलाके में माहौल बेहद तनाव पूर्ण हो गया था किसी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? यह तो गनीमत रही कि दोनों प्रत्याशी एक ही समुदाय के थे इसलिए कोई सांप्रदायिक विवाद उत्पन्न नहीं हुआ और प्रत्याशियों की सूझबूझ से मामले का निपटारा कर खुद नसरीन बानों के परिजनों ने हार स्वीकार करते हुए नैयर को विजेता मान लिया और विवाद को वहीं समाप्त कर दिया।।

लेकिन ऊपर दिखाए गए दस्तावेजों से आप समझ सकते हैं कि इसमें बड़ी गलती निर्वाचन आयोग के रिटर्निंग ऑफीसरों की है, अगर धरातल पर प्रत्याशियों से अपना चुनाव चिन्ह समझने में कोई गलती हुई भी हो, तो फिर निर्वाचन की वेबसाइट पर गलती कैसे हुई? मतलब साफ है कि ये सारा गड़बड़ झाला रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा किया गया था ऐसे में जो लेनदेन के आरोप भी लगाए जा रहे हैं उनसे भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

वहीं दूसरा मामला जुड़ा हुआ है जौनपुर ब्लाक के ग्राम कुंड से जहां दो प्रत्याशियों को बराबर वोट पड़े और एक वोट को लेकर संशय पैदा हो गया, पहले इस एक वोट को निर्वाचन अधिकारी RO द्वारा वैलिड वोट बताया गया और बाद में उसे इनवेलिड वोट घोषित करते हुए अमान्य कर दिया गया। और बिना प्रत्याशी की सहमति के पर्ची डालते हुए रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा अपनी तरफ से ही विजेता प्रत्याशी घोषित कर दिया गया।

इनवेलिड माना गया वोट…

जिसको लेकर एक प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी टीवी को भी प्रेषित किया गया है परंतु अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है प्रत्याशी ने अपने पत्र पर साफ लिखा है कि मतगणना के दौरान दोनों उम्मीदवारों को 185-185 यानी कि बराबर मत मिले, जिसमें 11 इनवैलिड मत थे जिसमें से एक मत को मतगणना स्थल पर तैनात RO लोकेश कुमार व उप जिलाधिकारी मंजू राजपुत द्वारा उम्मीदवार मधू नौटियाल के अभिकर्ता जितेन्द्र नौटियाल को अवगत कराया गया है कि मतदान संख्या- PA-364848 वैध है व करीब दो घण्टे तक इन्तजार करवाने के उपरांत अवगत कराया गया की उक्त मत नम्बर PA-364848 को returning officer द्वारा अवैध घोषित कर दिया गया है।

प्रत्याशी मधु नौटियाल द्वारा आरोप लगाया गया है कि उक्त मत को वहां मौजूद जिला पंचायत सदस्य व क्षेत्र पंचायत सदस्य के अभिकर्ताओं तक को नहीं दिखाया गया नाही उनसे कोई सलाह ली गई और करीब 6 बजे शाम को दुबारा उम्मीदार मधू नौटियाल व विपक्षी प्रत्याशी प्यारेलाल नौटियाल को RO एवं उप जिलाधिकारी ने संयुक्त रूप से बुलाया और पर्ची डालकर विजेता घोषित करने का सुझाव दिया जिसपर उम्मीदवार मधु नौटियाल ने पर्ची डालने से साफ इन्कार कर दिया था। परन्तु बावजूद इसके उप जिलाधिकारी और RO द्वारा जोर जबरदस्ती कर पर्ची बनाई गई व बिना उनकी सहमति के पर्ची निकाल कर विपक्ष के प्रत्याशी प्यारेलाल नौटियाल को विजेता घोषित कर दिया गया।।

इस मामले की शिकायत जिलाधिकारी टिहरी से की गई है जिस पर भविष्य में क्या निर्णय होगा वह देखना दिलचस्प होगा। निर्वाचन अधिकारियों की मनमर्जी आप इन दोनों मामलों में साफ तौर पर देख सकते हैं, दोनों ही मामलों में ऐसा प्रतीत होता है कि निर्वाचन अधिकारी बस किसी तरीके से इस चुनाव को निपटाना चाहते थे जबकि उन्हें इन समस्याओं का उचित समाधान करते हुए प्रत्याशियों को संतुष्ट करना चाहिए था, परंतु ऐसा नहीं हुआ जिसके चलते उनके ऊपर भ्रष्टाचार को अंजाम देते हुए कार्यवाही किए जाने के जो आरोप लग रहे हैं, वह भी कहीं ना कहीं प्रमाणित होते दिख रहे हैं।।

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