Site icon News India Update

UKD नेताओं की शर्मनाक हरकत…

UKD नेताओं की शर्मनाक हरकत…

दीप मैठाणी NIU ✍️ यूकेडी नेताओं की गुंडई लोकतंत्र के चेहरे पर एक तमाचा,
पत्रकारों पर हमला किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए सबसे शर्मनाक कृत्य होता है। ताज़ा घटना में उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) के कथित कार्यकर्ताओं और तथाकथित नेताओं द्वारा पत्रकार गोविंद पाटनी के साथ की गई बदसलूकी, गाली-गलौज और मारपीट की कोशिश हर उस नागरिक को झकझोर देती है जो लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्व देता है।
पत्रकार पर हमला केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि सच्चाई और सूचना के अधिकार पर सीधा प्रहार है। मिली जानकारी के अनुसार, यूकेडी के छुटभैये नेताओं ने पहले गोविंद पाटनी को रिपोर्टिंग से रोकने का प्रयास किया, फिर माइक छीनने और मोबाइल लूटने की कोशिश तक कर डाली। स्थिति इस कदर बिगड़ी कि उनसे जबरन वीडियो डिलीट भी कराई गई।
क्या यही है राजनीतिक मर्यादा और लोकतंत्र की कल्पना?
यूकेडी जैसे क्षेत्रीय दलों के मामूली से नेताओं को यह समझना चाहिए कि राजनीति का अर्थ जनसेवा है, गुंडागर्दी नहीं। हर अधिवेशन में इस तरह की घटनाएँ होना इस बात का प्रमाण है कि पार्टी के भीतर अनुशासन नहीं, बल्कि अहंकार और अवसरवाद पनप चुका है। जब ऐसे “छूट भैया” नेता पार्टी मीटिंग में ही संयम खो देते हैं, तो प्रदेश की सत्ता चलाने का उनका सपना एक दम तोड़ता भ्रम ही कहा जा सकता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छोटे स्तर के नेता खुद को “नेता” कहने की हद तक भी योग्य साबित नहीं कर पा रहे। जिन्हें जनता के दुख-दर्द उठाने चाहिए, वे पत्रकारों के कैमरे और मोबाइल छीनने में लगे हैं। यह प्रवृत्ति न केवल यूकेडी के लिए, बल्कि समूचे उत्तराखंड के लोकतांत्रिक चरित्र के लिए भी बेहद खतरनाक है।
पत्रकार समाज की वह आवाज़ है जो जनता और सत्ता के बीच सेतु का काम करती है। यदि यही आवाज़ दबा दी जाए, तो सच कहां बचेगा? इसलिए यह आवश्यक है कि पुलिस इस प्रकरण में त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई करे, ताकि भविष्य में कोई भी असामाजिक तत्व मीडिया की स्वतंत्रता को चुनौती देने का दुस्साहस न कर सके।
यूकेडी के शीर्ष नेतृत्व को भी चाहिए कि वह अपने कार्यकर्ताओं की इस हरकत पर सार्वजनिक माफी मांगे और संबंधित लोगों को पार्टी से बाहर करे, अन्यथा यह दल जनता की नज़रों में पहले ही गिरा हुआ है और आगे भी ऐसे ही गिरता जाएगा, जैसा कि वह अब तक गिरता आया है।
पत्रकारों पर हमला लोकतंत्र के गाल पर चांटा है और इस चांटे की गूंज तब तक सुनाई देती रहेगी, जब तक सत्ता और संगठन दोनों अपने भीतर झांककर शर्मिंदा नहीं होते।

Exit mobile version