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अखबार ने उठाया मुद्दा, Digital/Electronic मीडिया ने किया सहयोग, गरीबों के हक में आया फैसला, मलिन बस्तियों के जरूरतमंदों को मिल सकेगा अपना घर । NIU

अखबार ने उठाया मुद्दा, Digital/Electronic मीडिया ने किया सहयोग, गरीबों के हक में आया फैसला, मलिन बस्तियों के जरूरतमंदों को मिल सकेगा अपना घर । NIU

देहरादून NIU दीप मैठाणी ✍️
प्रदेश की 582 मलिन बस्तियों में रहने वाले गरीबों को भले ही केंद्र सरकार की पीएम आवास योजना “इन सिटी” से अपने आशियाने की सौगात न मिल पाई हो लेकिन मीडिया कर्मियों द्वारा की गई कसरत व अधिकारीय से लेकर नेताओं से पूछे गए तीखे सवालों के चलते अब राज्य सरकार उनके लिए आवास बनाएगी। इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर नगर निगम देहरादून को आवास बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह सफल होने के बाद गरीबों के लिए प्रदेशभर में आवास बनाए जाएंगे।

मलिन बस्ती

दरअसल, वर्ष 2015 में शुरू हुई पीएम आवास योजना “इन सिटी” में मलिन बस्तियों के पुनर्वास के लिए पीपीपी मोड पर आवास बनाने की सुविधा दी गई थी परंतु पिछले 7 सालों में उत्तराखंड से एक भी निकाय ने इसका प्रस्ताव शहरी विकास मंत्रालय को नहीं भेजा जिसके चलते 2022 में केंद्र सरकार ने यह सुविधा बंद कर दी।
इन सात साल में राज्य के एक भी निकाय ने मलिन बस्तियों के पुनर्वास के लिए आवास निर्माण का प्रस्ताव शहरी विकास विभाग को नहीं भेजा।

अमर उजाला ने 6 फरवरी के अंक में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। जिसके बाद न्यूज़ इंडिया अपडेट NIU की टीम ने भी नगर आयुक्त देहरादून से लेकर मेयर देहरादून से इस संदर्भ में बात की थी और मलिन बस्तियों के प्रस्ताव पिछले 7 साल में ना भेजे जाने के कारणों को प्रमुखता से पूछा था, देखें विडियो। 👇

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मनोज जुयाल नगर आयुक्त देहरादून

सरकार इन बस्तियों के लिए अब अपने स्तर से आवास बनाने की योजना बना रही है। नगर निगम देहरादून ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत पांच ऐसे स्थान चिन्हित कर लिए हैं। इसकी विस्तृत कार्ययोजना तैयार हो रही डीपीआर शासन को भेजे जाने के बाद ही तय होगा कि यह आवास कैसे होंगे?
इस बाबत हमने भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मनबीर चौहान से भी बात की थी उन्होंने तब ही जानकारी देते हुए बता दिया था कि की ऐसी बस्तियों के लिए राज्य सरकार अपनी मद से व्यवस्था कर रही है, देखें विडियो 👇

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मनदीप चौहान बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता

बड़ा सवाल है की हर बात के लिए केंद्र पर आश्रित रहने वाला प्रदेश साथ ही जो प्रदेश अपनी रकम का 71 फीसदी सिर्फ कर्ज चुकाने में लगा रहा हो, जिस पर 73,751 करोड़ का कर्जा चढ़ा है, जोकि पुराना आंकड़ा 2021 का है, बावजूद इसके सरकार ऐसे प्रदेश में कहां से इन मलिन बस्तियों के लिए मद पैदा करेगी? जबकि पूर्व में ब्यूरोक्रेसी चाहती तो यही काम केंद्र सरकार की मदद से बड़े आराम से किया जा सकता था और इससे प्रदेश पर अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ता।

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