औद्योगिक विकास और अव्यवस्थित निर्माण बन रहे आपदा का कारण
नई दिल्ली। दुनिया भर के प्रमुख तटीय शहरों में ज़मीन के तेजी से धंसने का खतरा गंभीर होता जा रहा है। समुद्र के जलस्तर में हो रही लगातार बढ़ोतरी और शहरी विकास के कारण कई शहरों की ज़मीन हर साल एक सेंटीमीटर या उससे अधिक की दर से नीचे जा रही है। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार, एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के दर्जनों महानगर इस संकट से प्रभावित हैं, जिससे बाढ़, जलभराव और ढांचागत अस्थिरता जैसे खतरे सामने आ रहे हैं।
भारत के भी कई बड़े शहर इस समस्या की चपेट में हैं। मुंबई, चेन्नई, सूरत, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे शहरों में लाखों लोग ऐसी ज़मीन पर रह रहे हैं, जो साल दर साल नीचे धंस रही है। यह खुलासा सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक विस्तृत अध्ययन में हुआ है। शोध के मुताबिक 2014 से 2020 के बीच दुनियाभर में लगभग 7.6 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रह रहे हैं, जहां जमीन सालाना कम से कम 1 सेंटीमीटर धंसी है।
मुंबई के किंग्स सर्कल स्टेशन सहित कई इलाके हर साल औसतन 2.8 सेंटीमीटर तक धंस रहे हैं। करीब 62 लाख लोग ऐसे क्षेत्रों में बसे हैं, जहां हर साल जमीन खतरनाक दर से नीचे जा रही है। विशेषज्ञों के अनुसार इसका मुख्य कारण अनियंत्रित भूजल दोहन, भारी निर्माण गतिविधियाँ और मेट्रो परियोजनाओं का बोझ है।
गुजरात का औद्योगिक शहर सूरत भी इस संकट से अछूता नहीं है। करंज क्षेत्र में जमीन हर साल 6.7 सेंटीमीटर की दर से नीचे जा रही है, जिससे करीब 41 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं।
चेन्नई के कुछ हिस्सों में ज़मीन हर साल औसतन 0.01 से 3.7 सेंटीमीटर तक नीचे जा रही है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 12 लाख लोग इस भू-धंसाव के दायरे में हैं।
अहमदाबाद के पीपलाज क्षेत्र में भू-धंसाव की गति 4.2 सेंटीमीटर प्रति वर्ष तक है, जिससे 34 लाख से अधिक लोग खतरे में हैं।
कोलकाता के भाटपाड़ा क्षेत्र में सालाना 2.6 सेंटीमीटर तक ज़मीन धंस रही है। यहां 17 लाख लोगों के सामने संरचनात्मक अस्थिरता और बाढ़ का खतरा बना हुआ है।