भट्टा गांव रोपवे पर मॉक ड्रिल का रोमांचक अभ्यास, ‘हवा में लटके’ केबिनों से निकाले गए लोग, जानिए क्यों जरूरी है ये तैयारी…
रिपोर्टर- सुनील सोनकर
मसूरी में बुधवार को कुछ देर के लिए रोमांच, रेस्क्यू और राहत का अनोखा दृश्य देखने को मिला। भट्टा गांव रोपवे पर, जो आम दिनों में पर्यटकों की भीड़ से गुलजार रहता है, अचानक सायरनों की आवाज़ गूंजने लगी और सुरक्षा बलों की फुर्ती देखने लायक थी। लेकिन घबराइए मत कृ ये कोई असली हादसा नहीं था, बल्कि एक पूर्व नियोजित मॉक ड्रिल थी, जिसमें यह अभ्यास किया गया कि अगर रोपवे में तकनीकी खराबी आ जाए और पर्यटक हवा में फंस जाएं, तो कैसे मिनटों में उन्हें सुरक्षित निकाला जा सकता है।
इस मॉक ड्रिल में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ), सिविल पुलिस, अग्निशमन विभाग, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम की टीमों ने संयुक्त रूप से भाग लिया। अभ्यास में यह मान लिया गया कि रोपवे अचानक बंद हो गया है और कई केबिन हवा में अटक गए हैं, जिनमें यात्री फंसे हैं। टीमें पूरी मुस्तैदी से एसडीएम मसूरी आईएएस राहुल आंनद के नेतृत्व में मौके पर पहुंचीं, स्थिति का मूल्यांकन किया गया और करीब एक घंटे के ‘रोप रेस्क्यू टेक्निक’ के ज़रिए यात्रियों को एक-एक करके नीचे उतारा गया।
एसडीएम मसूरी आईएएस राहुल आनंद, राजन सिंह इंस्पेक्टर 15 एनडीआरएफ और रमेष कुमार एसआई आईटीबीपी ने बताया कि मॉक ड्रिल का मुख्य उद्देश्य है कि आपदा के समय त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया देना है विभिन्न विभागों के बीच तालमेल और समन्वय की क्षमता को परखने साथ उपकरणों और संसाधनों की वास्तविक समय में टेस्टिंग किया जाना। वही स्थानीय प्रशासन और राहत टीमों की तैयारियों का मूल्यांकन करना व पर्यटकों और आम नागरिकों में विश्वास और जागरूकता बढ़ाना है। उन्होने कहा कि मसूरी एक पर्यटन स्थल है जहां हर साल लाखों लोग आते हैं। रोपवे जैसे हाई-टेक सिस्टम में तकनीकी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए हमारी ज़िम्मेदारी है कि ऐसी किसी भी आपात स्थिति के लिए पूरी तैयारी रहे। यह मॉक ड्रिल उसी दिशा में एक मजबूत कदम है।उन्होने कहा कि भट्टा गांव रोपवे पर हुई यह मॉक ड्रिल सिर्फ एक अभ्यास नहीं, बल्कि एक संदेश है कि उत्तराखंड अब आपदा प्रबंधन में और अधिक सतर्क, प्रशिक्षित और समन्वित हो चुका है। ऐसी पहलों से न केवल जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, बल्कि लोगों का विश्वास भी बढ़ता है।
गौरतलब है कि बीते वर्षों में भारत के कई राज्यों में रोपवे में फंसे लोगों को निकालने के लिए लंबा ऑपरेशन चलाना पड़ा है। उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में, जहां रोपवे पर्यटन और स्थानीय परिवहन का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं, ऐसे अभ्यास समय-समय पर ज़रूरी हैं।
स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने इस अभ्यास को देखकर राहत की सांस ली। लोगों ने कहा कि अच्छा लगा कि प्रशासन इतने बड़े स्तर पर तैयारी कर रहा है। कम से कम हमें भरोसा है कि अगर कभी कुछ हुआ, तो मदद ज़रूर पहुंचेगी।