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पंचायत चुनाव बना प्रत्याशियों के लिए सरदर्द? इस मॉनसून में कैसे पहुँचेंगे मतदाताओं तक? सोशल मीडिया पर बहस जारी । NIU

पंचायत चुनाव बना प्रत्याशियों के लिए सरदर्द? इस मॉनसून में कैसे पहुँचेंगे मतदाताओं तक? सोशल मीडिया पर बहस जारी । NIU

दीप मैठाणी, संपादक NIU ✍️
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव का रास्ता भले ही खुल गया हो निर्वाचन आयोग द्वारा नई तिथियों को भी जारी कर दिया गया हो लेकिन प्रत्याशियों से लेकर चुनाव अधिकारियों का सर दर्द अभी भी बरकरार है और इसका कारण बन रहा है उत्तराखंड में समय से पहले पहुंचा मानसून।
सोशल मीडिया पर राजनीतिक बुद्धिजीवीयों और चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्याशियों द्वारा चर्चाओं का दौर शुरू हो चुका है, वो लिख रहे हैं कि पूर्व में जब मौसम सुहावना था तब पंचायत चुनाव को लटकाया गया और अब जब मौसम भारी बरसात का है तब चुनाव करवाए जा रहें हैं।
दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बरसात के बीच पंचायत चुनाव कराने को लेकर खास तौर चिंता जताई जा रही है जहां सामान्य दिनों में भी सड़क हादसे नहीं थमते वहां गिरते ढहते पहाड़ों की बीच, बरसात में हादसों पर सरकार कैसे रोक लगाएगी?
पहाड़ों में कई जगह, कई किलोमीटर तक कच्चे और टेढ़े मेढ़े रास्तों पर पैदल चलकर गांव तक पहुंचना होता है ऐसे में प्रत्याशी इस बरसात में कैंपेनिंग कैसे करेगा?
यहां आपको फिर बता दें कि उत्तराखंड में हरिद्वार को छोड़कर 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की घोषणा हुई है, जिसमें अधिसूचना के अनुसार, पहले चरण का मतदान 24 जुलाई को तथा दूसरे चरण का मतदान 28 जुलाई को होगा। 31 जुलाई को मतगणना की जाएगी।

सोशल मीडिया पर लोगों ने भारी बारिश और भूस्खलन के जोखिम के बीच चुनाव कराने को गैर-जिम्मेदाराना बताया है हालांकि हमारा मानना है कि मतदान की तिथि अभी दूर है तब तक मानसून की स्थिति बदल सकती है लेकिन बड़ा सवाल है कि प्रत्याशियों ने तो अभी से कैंपेनिंग शुरू करनी है वह कैसे करेंगे? इस मौसम में वह दूरस्थ मतदाताओं तक “सर पर पत्थर गिरने और पैरों पर जोंक के खतरे” के बीच कैसे पहुंच पाएंगे?
वहीं सोशल मीडिया पर लोगों ने उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना का जिक्र करते हुए कुछ ने सरकार से चुनाव टालने की मांग भी उठाई है, ताकि मतदाताओं और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। मौसम विभाग ने भी हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और राजस्थान जैसे पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश की चेतावनी दी है, जिससे आपदा का खतरा बढ़ सकता है।
वहीं इसपर राज्य निर्वाचन आयोग ने बरसात को ध्यान में रखते हुए कंटीजेंसी प्लान बनाने के निर्देश दिए हैं, लेकिन मौसम की अनिश्चितता और प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को देखते हुए कई लोग मानते हैं कि मानसून के बाद चुनाव कराया जाता तो ज्यादा सुरक्षित माहौल मिलता।
अंत में जानकारी हेतु बता दें कि इस बार पंचायत चुनाव 89 विकासखंडों और 7,499 ग्राम पंचायतों में कराए जाएंगे। कुल 12 जिलों में 66,418 पदों के लिए यह चुनाव होंगे। अनुमान है कि इन चुनावों में 47 लाख से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे।

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